हंस रूप भगवान ने, धर्यो सर्वेश्वर रूप ।
राधासर्वेश्वरशरण, चक्र--स्वरूप अनूप ॥१ ॥
सनकादिक सेवित सदा, श्रीसर्वेश्वर नाम ।
राधासर्वेश्वरशरण, प्रतिपल कोटि प्रणाम ॥२॥
शालग्राम स्वरूप हैं, सर्वेश्वर प्रिय रूप ।
राधासर्वेश्वरशरण, नमन करें सुरभूप ।३॥
श्रीसर्वेश्वर भजन हो, प्रतिपल पावन ध्यान ।
राधासर्वेश्वरशरण, वेद-पुराण विधान ॥८॥
तब ही सर्वेश्वर कृपा, जब हो दैन्य स्वरूप ।
राधासर्वेश्वरशरण, प्रणशत यह भव कूप ॥५॥
रसना सर्वेश्वर प्रभू, रटती प्रतिपल नाम ।
राधासर्वेश्वरशरण, जीवन शुभ परिणाम ।६॥
जो सर्वेश्वर अविरल भजे, छांड जगत की आश ।
राधासर्वेश्वरशरण, उसके हृदय प्रकाश ॥७॥
भव सागर अति गहन है, झंझावत अनेक ।
राधासर्वेश्वरशरण, रखे सर्वेश्वर टेक ॥८॥
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जवाब देंहटाएंजय श्री राधे
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