श्रीपादमावेदितहार्द्दमेव शिष्यं स्वसंस्कारकपञ्चकेन ।
निम्बार्कदेव ! स्वपरंपरां वा श्रीश्रीनिवासाग्रमधात् सुधाश्च ।
नानोपदेशैर्गतसंशयं तमाज्ञाय चाशाविजयाय चास्व ।
गोवर्द्धनाद्रेस्सुसमीपनिम्बग्रामं सदाविर्जयति स्वयं वै ॥
आपने पञ्च संस्कार प्रणाली से हे प्रभो अपना रहस्य सिद्धान्त और परम्परा अपने पट्ट शिष्य पाञ्चजन्यावतार श्री श्रीनिवासाचार्यजी को प्रदान की । अर्थात् स्वसिद्धान्त के पूर्ण ज्ञाता बनाकर आचार्य गादी पर उनकी नियुक्ति की, और उनको अनेकों उपदेशों द्वारा निस्संदेह बना,दिग्विजय के लिये आज्ञा दी । इसी प्रकार आप स्वयं श्रीगिरिराज श्रीगोवर्द्धन के सन्निकट ही निम्बग्राम में सदा सर्वदा प्रकट होते रहते हैं, अत: भावुक भक्तों को इस कथन का अनुभव कराने वाले आपकी जय हो ।
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